Nahar Shah Wali Khajrana Dargah indore 5.18

Khajrana
Indore, 452016
India

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Nahar Shah Wali Khajrana Dargah indore Nahar Shah Wali Khajrana Dargah indore is a well known place listed as City in Indore , Public Places in Indore , Religious Organization in Indore ,

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खजराना का इतिहास ~~~~~~ मेरी जुबानी
इंदौर शहर का इतिहास तीन सौ साल से ज्यादा नहीं है |
लेकिन खजराना का इतिहास इंदौर शहर से भी ज्यादा पुराना है |
हिन्दुस्तान के बादशाह औरंगजेब अपने भाइयों के विद्रोह से बहुत परेशान रहते थे | इसके अलावा उनकी तमाम ज़िन्दगी जंग में ही बसर हुई | मराठों और दक्षिण के सूबेदारों को सबक सिखाने के लिए उन्हें बुरहानपुर होकर दक्खन जाना होता क्यूंकि आगरा और बुरहानपुर के बिच खजराना भी एक पड़ाव हुआ करता था | इस कारण उन्हीं की सेना के एक सिपाही जिन्होंने कई जंगों में औरंगजेब का साथ दिया " गाजी" की उपाधि हासिल थी | खजराना में कयाम किया |
आपका नाम हजरत गाजी नुरुद्दीन इराकी रहमतुल्लाह अलैह या नाहरशाह वली है | अल्लाह के बंदे सिर्फ अल्लाह से डरते है शेर-चीते क्या चीज है ? जब आप इबादत में मशरूफ रहते तो जंगल से आकर शेर आपके पास बैठ जाता आपके आसपास का मुकाम अपनी पूंछ से साफ़ करता जिसे देखकर गाँव के लोग इन्हें नाहर यानी शेर वाले बाबा भी बोलने लगे | इस तरह आप नाहरशाह वली के नाम से मशहूर हुए | आपकी मज़ार इंदौर शहर के पूरब में खजराना में स्थित है | इंदौर बस जाने के बाद हिन्दुस्तान के बादशाह फर्रुख सियार और मोहम्मद शाह बंगश ने "शाह" परिवार को यहाँ बस्ती बसानेे के लिए जमीन और दरगाह शरीफ की मुजावरी दी | जिसमें से अधिकाँश आज भी मेरे नाना-मामा के पास है |
औरंगजेब के बाद के बादशाहों ने भी समय-समय पर इंदौर के होलकर बादशाहों को आदेश देकर हमारे "शाह" परिवार को कई जमीन ईनाम और दरगाह के इंतजाम के लिए दी |
इसी तरह की एक बेशकीमती जमीन जिसे हम आज स्टार चौराहा {MR9} खजराना कब्रस्तान रोड , सादी तालाब कहते है जहाँ आज हवाईजहाज वाला रेस्टारेंट खुला हुआ है वो हमारे पूर्वजों की ईनामी जमीन पर है | उसके ठीक पास वाली जमीन भी हमें खजराना बसाने और खेती-बाड़ी करने के लिए मिली | इसका सुबूत ये रजिस्ट्री की कॉपी जिसमें मेरी नानी के वालिद रमजान शाह का नाम लिखा हुआ है | आज भी मेरे पास बतौर सुबूत रखी है |ये जमीन इंदौर के आखरी बादशाह जनाब यशवंत राव होलकर ने रजिस्ट्री करके बतौर इनाम 1930 में दी |
नाहरशाह वली की दरगाह की आख़री मुजावरी सन 1992 तक हमारे शाह' परिवार में रही | बाद में वक्फ बोर्ड ने कब्ज़ा जमा लिया और हर तीन साल में यहाँ के सदर बदलते रहते है जहाँ हमारे पूर्वज नाहरशाह वाली की चौखट पर मुज़ावरी और फ़कीरी करते हुए तीन सौ साल से ख़िदमत को अंजाम देते हुए दुनिया से कुच कर गए |
सुप्रीम कोर्ट से हमारे शाह' परिवार के लोग वक्फ बोर्ड से केस जीतने के बाद भी यहाँ काबिज़ नही हो सके | आगे अल्लाह की मर्जी ,,,,
**** जावेद शाह खजराना

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