अपना मोहल्ला दिलावरपुर और अपना शहर मुंगेर को पीछे छोड़ मैं अपने सपनों का पीछा करता दिल्ली पहुंच गया.. अब मुझे मेरे दोस्त याद आते हैं.. दोस्तों के साथ बिना किसी काम के, कभी बबुआ घाट कभी कष्टहरणी घाट पर घंटों गप्प करना याद आता है.. शादीपुर में होने वाले हर रोज के झगड़े बहुत याद आते हैं. पोलो फील्ड में दोस्तों के साथ बैठकर चोरी छिपे सिगरेट पीना, चिमनी की तरह निकलते धुएं के बीच राजनीति की बातें करना और उसके बाद जम्मू के दर्द भरे गाने बहुत याद आते हैं. मोफिद की कहानियां, इरशाद की आशिकी, श्री का अमीर बनने का सपना और गोपाल जी की चाय भी याद आती हैं. पिलपहाड़ी पर पिकनिक याद आती है.. इन्ही यादों को समेटने के लिये मैने इस पेज का सहारा लिया है.. मुंगेर से जुडी कोई याद अगर आप भी समेटे हुए हैं तो इस पेज के हकदार आप भी हैं..आप भी इस पर लिखें .. जम कर लिखें.. यादों को बांटने के लिये पैसे नहीं लगते हैं..!!
jahan rehte the sadiyon se muhalla chut gaya humse
jahan paida hue vo shekhvara codh aaye hain ....!!!!
vatan k chootne ka ranj har ek ko hota hai ....
chalo unse bhi kuch puchen jo DELAWERPUR chod aaye hain ....!!!