Brahmans of Ashta - M.P. 3.4

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17, jayprakash Narayan Ward Sanskar Budhwara
Ashta, 466116
India

About Brahmans of Ashta - M.P.

Brahmans of Ashta - M.P. Brahmans of Ashta - M.P. is a well known place listed as Organization in Ashta ,

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भविष्य पुराण मं ब्राम्हणां के गोत्रों का उल्लेख मिलता है जो कि निम्नलिखित हैं.प्राचीन काल मं महर्षि कश्यप के पुत्र कण्वकी आर्यावनी नाम की देवकन्या पत्नी हुई। इन्द्रकी आज्ञासे दोनों कुरुक्षेत्रवासिनी सरस्वती नदी के तट पर गये और कण्व चतुर्वेदमय सूक्तों में सरस्वती देवी की स्तुति करने लगे। एक वर्ष बीत जाने पर वह देवी प्रसन्न हो वहां आयीं और आर्यों की समृद्धि के लिये उन्हंे वरदान दिया। वर के प्रभाव कण्व के आर्य बुद्धिवाले दस पुत्र हुए - उपाध्याय, दीक्षित, पाठक, शुक्ला, मिश्रा, अग्निहोत्री, द्विवेदी, त्रिवेदी, पाण्डय और चतुर्वेदी । इन लोगांे का जैसा नाम था वैसा ही गुण। इन लोगांे ने नतमस्तक हो सरस्वती देवी को प्रसन्न किया। बारह वर्ष की अवस्था वाले उन लोगांे को भक्तवत्सला शारदादेवी ने अपनी कन्याएंे प्रदान की। वे क्रमशः उपाध्यायी, दीक्षिता, पाठकी, शुक्लिका, मिश्राणी, अग्निहोत्रिधी, द्विवेदिनी, त्रिवेदिनी पाण्ड्यायनी और चतुर्वेदिनी कहलायीं। फिर उन कन्याआंे के भी अपने-अपने पति से सोलह-सोलह पुत्र हुए हैं वे सब गोत्रकार हुए जिनका नाम इस - कष्यप, भरद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्रि वसिष्ठ, वत्स, गौतम, पराशर, गर्ग, अत्रि, भृगडत्र अंगिरा, श्रंृगी, कात्यायन और याज्ञवल्क्य। इन नामांेसे सोलह-सोलह पुत्र जाने जाते हैं। मुख्य 10 प्रकार ब्राम्हणों ये हैं-
(1) तैलंगा (2) महार्राष्ट्रा (3) गुर्जर, (4) द्रविड (5) कर्णटिका यह पांच द्रविण कहे जाते हैं, ये विन्ध्यांचल के दक्षिण में पाय जाते हैं तथा विंध्यांचल के उत्तर मंे पाये जाने वाले या वास करने वाले ब्राम्हण (1) सारस्वत (2) कान्यकुब्ज (3) गौड़ (4) मैथिल (5) उत्कलये उत्तर के पंच गौड़ कहे जाते हैं। वैसे ब्राम्हण अनेक हैं जिनका वर्णन आगे लिखा है। ऐसी संख्या मुख्य 115 की है। शाखा भेद अनेक हैं । इनके अलावा संकर जाति ब्राम्हण अनेक है । यहां मिली जुली उत्तर व दक्षिण के ब्राम्हणों की नामावली 115 की दे रहा हूं। जो एक से दो और 2 से 5 और 5 से 10 और 10 से 84 भेद हुए हैं, फिर उत्तर व दक्षिण के ब्राम्हण की संख्या शाखा भेद से 230 के लगभग हैं तथा और भी शाखा भेद हुए हैं, जो लगभग 300 के करीब ब्राम्हण भेदों की संख्या का लेखा पाया गया है।
उत्तर व दक्षिणी ब्राम्हणांे के भेद इस प्रकार है
81 ब्राम्हाणांे की 31 शाखा कुल 115 ब्राम्हण संख्या (1) गौड़ ब्राम्हण (2)मालवी गौड़ ब्राम्हण (3) श्री गौड़ ब्राम्हण (4) गंगापुत्र गौडत्र ब्राम्हण (5) हरियाणा गौड़ ब्राम्हण (6) वशिष्ठ गौड़ ब्राम्हण (7) शोरथ गौड ब्राम्हण (8) दालभ्य गौड़ ब्राम्हण (9) सुखसेन गौड़ ब्राम्हण (10) भटनागर गौड़ ब्राम्हण (11) सूरजध्वज गौड ब्राम्हण (षोभर) (12) मथुरा के चौबे ब्राम्हण (13) वाल्मीकि ब्राम्हण (14) रायकवाल ब्राम्हण (15) गोमित्र ब्राम्हण (16) दायमा ब्राम्हण (17) सारस्वत ब्राम्हण (18) मैथल ब्राम्हण (19) कान्यकुब्ज ब्राम्हण (20) उत्कल ब्राम्हण (21) सरवरिया ब्राम्हण (22) पराशर ब्राम्हण (23) सनोडिया या सनाड्य (24)मित्र गौड़ ब्राम्हण (25) कपिल ब्राम्हण (26) तलाजिये ब्राम्हण (27) खेटुुवे ब्राम्हण (28) नारदी ब्राम्हण (29) चन्द्रसर ब्राम्हण (30)वलादरे ब्राम्हण (31) गयावाल ब्राम्हण (32) ओडये ब्राम्हण (33) आभीर ब्राम्हण (34) पल्लीवास ब्राम्हण (35) लेटवास ब्राम्हण (36) सोमपुरा ब्राम्हण (37) काबोद सिद्धि ब्राम्हण (38) नदोर्या ब्राम्हण (39) भारती ब्राम्हण (40) पुश्करर्णी ब्राम्हण (41) गरुड़ गलिया ब्राम्हण (42) भार्गव ब्राम्हण (43) नार्मदीय ब्राम्हण (44) नन्दवाण ब्राम्हण (45) मैत्रयणी ब्राम्हण (46) अभिल्ल ब्राम्हण (47) मध्यान्दिनीय ब्राम्हण (48) टोलक ब्राम्हण (49) श्रीमाली ब्राम्हण (50) पोरवाल बनिये ब्राम्हण (51) श्रीमाली वैष्य ब्राम्हण (52) तांगड़ ब्राम्हण (53) सिंध ब्राम्हण (54) त्रिवेदी म्होड ब्राम्हण (55) इग्यर्शण ब्राम्हण (56) धनोजा म्होड ब्राम्हण (57) गौभुज ब्राम्हण (58) अट्टालजर ब्राम्हण (59) मधुकर ब्राम्हण (60) मंडलपुरवासी ब्राम्हण (61) खड़ायते ब्राम्हण (62) बाजरखेड़ा वाल ब्राम्हण (63) भीतरखेड़ा वाल ब्राम्हण (64) लाढवनिये ब्राम्हण (65) झारोला ब्राम्हण (66) अंतरदेवी ब्राम्हण (67) गालव ब्राम्हण (68) गिरनारे ब्राम्हण (69) गुग्गुले ब्राम्हण (70) मेरठवाल ब्राम्हण (71) जाम्बु ब्राम्हण (72) वाइड़ा ब्राम्हण (73) कड़ोल ब्राम्हण (74) ओदुवे या दुवे (75) वटमूल ब्राम्हण (76) श्रृंगालभाट ब्राम्हण (77) गौतम ब्राम्हण (78) पाल ब्राम्हण (79) सोताले ब्राम्हण (80) सिरापतन मोताल ब्राम्हण (81) महाराणा ब्राम्हण (82) चितपाक ब्राम्हण (83) कराश्ट ब्राम्हण (84) त्रिहोत्री या अग्निहोत्री ब्राम्हण (85) दशगोत्री ब्राम्हण (86) द्वात्रिदश ब्राम्हण (87) पन्तिय ग्राम ब्राम्हण (88) मिथिनहार ब्राम्हण (89) सौराष्ट्र ब्राम्हण (90) हेव ब्राम्हण (91) केरल ब्राम्हण (92) तुलव ब्राम्हण (93) नेतरु ब्राम्हण (94) यवराद्र ब्राम्हण (95) कंदाव ब्राम्हण (96) कोढ़व ब्राम्हण (97) शिविल्ली ब्राम्हण (98) शिविल्ली ब्राम्हण (99) दशावाल ब्राम्हण (100) भटमेवाड़े ब्राम्हण (101) तिवारी मेवाड़े ब्राम्हण (102) चौरासी या चौरसिया ब्राम्हण (103) नागर ब्राम्हण ब्राम्हण (104) वड़नागर ब्राम्हण (105) चितौड़े नागर ब्राम्हण (106) प्रष्नोरे ब्राम्हण (107) भारड़ नागर ब्राम्हण (108) विसनागर ब्राम्हण (109) साठोदरे ब्राम्हण (110) त्यागी ब्राम्हण (111) कर्णाटक ब्राम्हण (112) तैलगू ब्राम्हण (113) द्रविण ब्राम्हण (114) गुर्जर ब्राम्हण (115) महाराष्ट्रा ब्राम्हण।

ब्राह्मणों के विवाह में गौत्र-प्रवर का बड़ा महत्व है। पुराणों व स्मृति ग्रंथों में बताया गया है कि यदि कोई कन्या संगौत्र हो, किंतु सप्रवर न हो अथवा सप्रवर हो किंतु संगौत्र न हो, तो ऐसी कन्या के विवाह को अनुमति नहीं दी जाना चाहिए।
विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप- इन सप्तऋषियों और आठवें ऋषि अगस्ति की संतान ‘गौत्र” कहलाती है। यानी जिस व्यक्ति का गौत्र भारद्वाज है, उसके पूर्वज ऋषि भारद्वाज थे और वह व्यक्ति इस ऋषि का वंशज है। आगे चलकर गौत्र का संबंध धार्मिक परंपरा से जुड़ गया और विवाह करते समय इसका उपयोग किया जाने लगा।
ऋषियों की संख्या लाख-करोड़ होने के कारण गौत्रों की संख्या भी लाख-करोड़ मानी जाती है, परंतु सामान्यत: आठ ऋषियों के नाम पर मूल आठ गौत्र ऋषि माने जाते हैं, जिनके वंश के पुरुषों के नाम पर अन्य गौत्र बनाए गए। ‘महाभारत” के शांतिपर्व (297/17-18) में मूल चार गौत्र बताए गए हैं- अंगिरा, कश्यप, वशिष्ठ और भृगु, जबकि जैन ग्रंथों में 7 गौत्रों का उल्लेख है- कश्यप, गौतम, वत्स्य, कुत्स, कौशिक, मंडव्य और वशिष्ठ। इनमें हर एक के अलग-अलग भेद बताए गए हैं- जैसे कौशिक-कौशिक कात्यायन, दर्भ कात्यायन, वल्कलिन, पाक्षिण, लोधाक्ष, लोहितायन (दिव्यावदन-331-12,14) विवाह निश्चित करते समय गौत्र के साथ-साथ प्रवर का भी ख्याल रखना जरूरी है। प्रवर भी प्राचीन ऋषियों के नाम है तथापि अंतर यह है कि गौत्र का संबंध रक्त से है, जबकि प्रवर से आध्यात्मिक संबंध है। प्रवर की गणना गौत्रों के अंतर्गत की जाने से जाति से संगौत्र बहिर्विवाहकी धारणा प्रवरों के लिए भी लागू होने लगी।
वर-वधू का एक वर्ष होते हुए भी उनके भिन्न-भिन्न गौत्र और प्रवर होना आवश्यक है (मनुस्मृति- 3/5)। मत्स्यपुराण (4/2) में ब्राह्मण के साथ संगौत्रीय शतरूपा के विवाह पर आश्चर्य और खेद प्रकट किया गया है। गौतमधर्म सूत्र (4/2) में भी असमान प्रवर विवाह का निर्देश दिया गया है। (असमान प्रवरैर्विगत) आपस्तम्ब धर्मसूत्र कहता है- ‘संगौत्राय दुहितरेव प्रयच्छेत्” (समान गौत्र के पुरुष को कन्या नहीं देना चाहिए)