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ज्योतिर्भवः ज्योतिष सबके लिए ज्योतिर्भवः ज्योतिष सबके लिए is a well known place listed as Religious Organization in Kanpur ,

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ज्योतिर्भवः
ज्ञानवान बने, प्रज्ञावान बने, ज्योतिष्मान बने
अपने इन्ही मूल वाक्यों के साथ, परमपूज्य गुरुदेव आचार्य श्री प्रमोद द्विवेदी जी के सानिध्य में ज्योतिर्भवः कलयुग के अंधकार में डूबे समाज में धर्मज्ञान के दीपक को प्रज्वल्लित करने चल पढ़ा है..

मित्रों, इसे समय का दुष्प्रभाव कहा जाये या कुछ स्वार्थी तत्वों की लिप्सा जिन्होंने भारतीय ज्ञान-विज्ञान और अध्यात्म के प्रभाव और उसके महत्व को इतना धूल-धूसरित कर दिया है की आम जनमान के विचारों में अध्यात्मिक या दैविक विचार निरर्थक हो चुके हैं या वह इतने अंधविश्वासों में घिर गया है की सत्य और असत्य के बीच बोध नहीं कर पा रहा है.. कुछ लोग जो की मॉडर्न होने का दावा करते है वे वैदेशिक संस्कृतियों के प्लांटेड विचारों की विचारधारा से इतने ग्रसित हो चुके हैं की उन्हें धर्म-अध्यात्म, वेद, ज्योतिष जैसी चीज का नाम सुनते ही उन्हें दिमाग में तुरंत एक अन्धविश्वास नाम की काली छवि दिखाई देने लगती है..

वे आधुनिकता के अतिवाद के बोझ से इतना अधिक दब चुके है की विश्वास, आस्था और अन्धविश्वास के बीच के फर्क को समझ नहीं सकते..

दूसरी ओर भारतीय ज्योतिष और अध्यात्म को बदनाम करने वाले ऐसे लोगो की कमी भी नहीं है जिन्होंने आम भारतीय जनमानस के भावनात्मक मन का शोषण करके उन्हें उल-जुलूल बातों के साथ अन्धविश्वास के गहरे गर्त में ढकेल दिया है..

नीर-क्षीर विवेक के साथ हमारा प्रयास यही है की सत्य और असत्य के बीच, विश्वास और अन्धविश्वास के बीच, ज्ञान और अज्ञान के बीच एक रेखा खिंच सके एक सीमा का निर्धारण हो सके..और हम अपने इसी संकल्प के साथ संकल्पबद्ध हैं..

Spirituality is our tradition :
हमारा यह मूल कर्तव्य है की धर्म और अध्यात्म का प्रसार और संरक्षण हो हमारी प्राचीन भारतीय परम्पराओं, संस्कृति और विद्याओं का संवर्धन हो। जनसाधारण के मन में आस्था का संचार हो और भ्रामक तथ्यों का निर्मूलन हो हम लगातार इस दिशा में काम करते रहे हैं।

हमारे पास ज्योतिष और अध्यात्म के क्षेत्र में पांच पीढ़ियों की गौरवशाली और ऐतिहासिक धरोहर है। हमारे पूर्वजो में ब्रम्हलीन संत पंडित गोकर्णनाथ जी तिर्वा स्टेट के राजा उदितनारायण सिंह के समय में राजकीय धर्म-ध्वजा के संवाहक बनकर राजपुरोहित के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते रहे। तत्पश्चात उनके पुत्र स्वर्गीय पंडित श्री गंगादयाल जी ने राजा दुर्गा नारायण सिंह के समय में विरासत में मिले इस दायित्व का निर्वहन किया।

पंडित शिरोमणि स्वर्गीय गंगादयाल जी के परमात्मालीन हो जाने के बाद उनके पुत्र परमसंत गुरुदेव श्रीश्री लक्ष्मीनारायण जी कानपुर आकर बस गए और अपना सम्पूर्ण जीवन धर्म और आध्यामिकता के प्रसार संरक्षण और संवर्धन में लगा दिया। आनंद योग एवं ब्रम्हविद्या साधना के क्रम में वे परम आदरणीय ब्रम्हलीन संत श्री रघुवर दयाल (चच्चा जी) जी महाराज के द्वारा स्थापित संतमत से जुड़े एवं ब्रम्हलीन संत श्री ज्योतींद्रमोहन जी के बाद इस पम्परा के प्रमुख उत्तराधिकारियों में से एक रहे।

अपनी इसी आध्यात्मिक साधना की प्रखर पृष्ठभूमि के साथ गुरुदेव आचार्य श्री प्रमोद द्विवेदी जी भारतीय जनमानस के अन्दर आध्यात्मिक ऊर्जा का संचरण करने और प्राच्य विद्याओं के प्रति जागरूक करने के अपने संकल्प के साथ निरंतर गतिशील हैं.

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